प्यार है या फिर मात्र छलावा
भ्रम है या फिर दिखावा
युगों से लोग इसमें फंसते चले आ रहे हैं
ऋषि-मुनि भी तो कहाँ बच पाये हैं?
किवंदंतियां भी सदियों से चली आ रही हैं
इस युग में भी तो भरमार है
प्यार है या एक आकर्षण,
पहले तो कुछ सच्चाई भी नज़र आती थी
पर आज तो इसका रूप ही बदल गया है
प्यार एक आकर्षण मात्र ही रह गया है
न ही कोई सच्चाई न ही स्थिरता है
बस बुराइयों का ढेर बनता चला जा रहा है
यह कहाँ कोई समझ पा रहा है
युगों से तो प्यार की गरिमा व ठहराव की चर्चा भी चली आ रही है
उसके भी उदहारण हैं बहुत
पर कहाँ किसी को दिखाई देती है?
सच्चाई की प्रतिबिम्ब की झलक अंत तक दिखाई देती है
खुशबू बिखेरती है, चारों तरफ़ हवा का रुख फैलाती है
उसकी गरिमा को जानिए, गहराइयों तक पहुँचिये,
निष्ठा, गरिमा, व स्थिरता का सच्चा स्वरूप नज़र आता है
पर झूठा आकर्षण, झूठ का आधार जीवन को नकारात्मक बना देता है
कहाँ गया वह युग, कहाँ गए वो लोग,
जिनका ज़रा भी इस ओर ध्यान नहीं जाता
बदलाव आते हैं हर युग में,
पर आप कितने पानी में हैं यह सबको समझ में आता है
झाँक कर देखो तो प्यार में निष्ठां, प्रतिष्ठा,
स्थिरता एवं एक अटूट सम्बन्ध का कितना अच्छा सुखद एहसास नज़र आता है
जो लोग समझना चाहते नहीं हैं,
और बिगड़े हुए रूपों की ओर निरंतर भाग रहे हैं
यह छलावा नहीं तो और क्या है?
भ्रम नहीं तो और क्या है?
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