Satish Tehlan through this poem talks how he feels as a father of a young daughter hearing of the brutal crime against the 5-year-old in Delhi. We all are really ashamed by the societal behavior.
गुड़िया देश शर्मिंदा है ……..,
तेरा गुनाहगार अभी जिन्दा है !
मत रो लाडो तेरा दोष नहीं,
रहा लोगों को अब होश नहीं !
तू क्यों निकली थी घर से कल,
यहाँ ताक में हैं वहशी हर-पल !
हर तरफ दरिन्दों घूम रहे,
तेरे जैसी गुड़िया ढूंढ रहे !
तेरी पीड़ा से मै पीड़ित हूँ ,
बेटी का बाप हूँ चिंतित हूँ !
है माली और बाप की एक सोच ,
कहीं कली को ना ले कोई नोच !
मैंने बेटी को है बोल दिया,
उसके मन में विष घोल दिया !
नज़रें परखो और कुछ भी नहीं,
वरना तेरी भी हालत है वही…!
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